Friday, May 2, 2025

भू कानून जनता के साथ एक छलावा: डॉ. गणेश उपाध्याय

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भोंपूराम खबरी। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता डॉ. गणेश उपाध्याय ने भू कानून को जनता के साथ एक छलावा करार दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार जिस नए कानून को सख्त भू कानून के रूप में प्रचारित कर रही है, वह वास्तव में खोदा पहाड़, निकली चुहिया जैसा साबित हो रहा है। यह कानून उत्तराखंड के निकाय क्षेत्रों में लागू ही नहीं होता, जिससे इसकी सबसे बड़ी कमजोरी सामने आती है। जब यह कानून प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में जमीनों की असीमित खरीद की छूट देता है, तो फिर इसे सख्त कहना एक भ्रामक प्रचार मात्र है।

उन्होने कहा कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में लगभग 185 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है, जिसमें कैंटोनमेंट क्षेत्र को छोड़ दें, तो लगभग ढाई लाख बीघा जमीन उपलब्ध है। इसी तरह अन्य शहरी क्षेत्रों में भी बड़ी मात्रा में प्राइम लैंड मौजूद है। लेकिन सरकार का नया कानून इन शहरों में जमीनों की अंधाधुंध खरीद-फरोख्त की अनुमति देता है, जिससे बड़े बिल्डरों और भू-माफियाओं को खुला खेल खेलने का मौका मिलेगा। सरकार का यह कदम केवल बाहरी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की एक चाल है, सरकार की प्राथमिकता बाहरी लोगों की जेबें भरने में है, जो पहले से ही प्रदेश की भूमि पर अपना कब्जा जमाने की फिराक में थे। यदि सरकार का उद्देश्य उत्तराखंड की जमीनों की सुरक्षा करना होता तो पहाड़ के स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता मिलती और बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद को नियंत्रित किया जाता।

उन्होंने कहा कि जो भू कानून पहले था, वह पूरे उत्तराखंड पर समान रूप से लागू होता था, जिससे पहाड़ और मैदान दोनों की भूमि को बचाने में मदद मिलती थी। लेकिन अब यह नया कानून विशेष रूप से हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त के सभी प्रतिबंध हटा देता है। यह नीति प्रदेश के किसानों की जमीन छीनकर उद्योगपतियों और बड़े बिल्डरों के हाथों में सौंपने की कोशिश है।

 

इस कानून की धारा 2 स्पष्ट रूप से कहती है कि यह कानून नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका और छावनी परिषद में लागू नहीं होगा। इसका मतलब यह हुआ कि प्रदेश के 100 से ज्यादा शहरी निकायों में इस कानून की कोई अहमियत नहीं है। मैदान के दो जिलों में ही 33 निकाय आते हैं, जबकि बाकी निकाय पहाड़ी जिलों में हैं। ऐसे में यह कानून केवल दिखावे के लिए लाया गया है और इसका कोई ठोस प्रभाव पहाड़ी इलाकों में नहीं पड़ेगा। नया भू कानून स्थानीय निवासियों के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा और प्रदेश के मूल निवासियों की भूमि धीरे-धीरे बाहरी लोगों के कब्जे में चली जाएगी। इस कानून में सबसे खतरनाक प्रावधान यह है कि मैदान में एक बार जमीन खरीदने के बाद कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड का भूमिधर बन जाएगा और फिर उसे प्रदेश में कहीं भी जमीन खरीदने का हक मिल जाएगा। यह कानून प्रदेश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ है और इसके कारण पहाड़ों में भूमि संकट और बढ़ जाएगा।

कांग्रेस इस कानून का पूरी तरह से विरोध करेगी और जनता के सामने इस छलावे को बेनकाब करेगी।

इस कानून के जरिए सरकार ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि उसे सिर्फ बिल्डरों, भू-माफियाओं और पूंजीपतियों की परवाह है, न कि आम जनता की।

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