भोंपूराम खबरी। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण लगे प्रतिबंधों को देखते हुए रूस ने भारत को बेहद सस्ते दामों में कच्चा तेल बेचा था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. रॉयटर्स ने जो कैलकुलेशन किए हैं, उससे पता चला है कि रूस भारत को 80 डॉलर प्रति बैरल पर तेल बेच रहा है जो कि पश्चिमी देशों की तरफ से रूसी तेल पर लगाए गए प्राइस कैप से 20 डॉलर अधिक है. पश्चिमी देशों ने रूस के राजस्व पर वार करने के लिए उसके तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल का प्राइस कैप लगा दिया था.
रूसी तेल की कीमतों में यह बढ़ोतरी इसलिए आई है क्योंकि सऊदी अरब और रूस ने मिलकर तेल उत्पादन में भारी कटौती कर दी है. उनके इस कदम का उद्देश्य तेल की कीमतों को बढ़ाना था और हो भी ऐसा ही रहा है सऊदी अरब और रूस के साथ-साथ ओपेक देशों क तेल उत्पादन में कटौती के बीच जुलाई के महीने से रूस का कच्चा तेल यूराल प्राइस कैप 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बिक रहा है।
व्यापारियों के डेटा और रॉयटर्स के कैलकुलेशन के मुताबिक, अक्टूबर में बाल्टिक बंदरगाह (रूस) से लोड होने वाले यूराल कार्गो की कीमत भारतीय ग्राहकों के लिए गुरुवार को 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब था।
नियमित रूप से रूसी तेल खरीदने वाली एक भारतीय रिफाइनर के एक अधिकारी ने कीमतों में उछाल को लेकर कहा, ‘रूस का तेल भंडार कम है और उसने अपने उत्पादन में भी कटौती कर दी है. ‘
रूसी तेल पर मिलने वाला डिस्काउंट हुआ न्यूनतम तेल के ऑपरेशन काम में शामिल चार व्यापारिक सूत्रों ने बताया कि तेल उत्पादन में कटौती से भारत को रूसी तेल पर मिलने वाली छूट 4-5 डॉलर प्रति बैरल तक सिमटकर रह गई है. उन्होंने कहा कि यह कमी अक्टूबर की रूसी तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुई है. रूसी तेल पर पहले भारत को 30-35 डॉलर प्रति बैरल की भारी छूट मिल रही थी.
रूसी तेल खरीदना मजबूरी
रूसी तेल बाजार से परिचित एक व्यापारी ने कहा कि उन्हें महंगा रूसी यूराल खरीदना पड़ रहा है, क्योंकि उनके पास जो विकल्प हैं, वो उससे भी महंगे हैं। व्यापारी ने कहा, ‘यूराल की कीमतें फिर से बढ़ रही हैं. इसके विकल्प बहुत अधिक महंगे हैं और आसानी से मिलते भी नहीं हैं.’
रूस के यूराल से आम तौर पर उच्च मात्रा में डीजल निकाला जा सकता है जो कि भारत के रिफाइंड ईंधन खपत का दो-पांचवां हिस्सा है. वैश्विक स्तर पर तेल की कमी के बीच रूस ने डीजल और गैसोलीन के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे रूसी यूराल की मांग और बढ़ गई है।
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक भारत 2022 से ही रूसी यूराल का शीर्ष खरीददार बन गया है. यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए और उसके तेल आयात पर भी कई पाबंदियां लगाईं जिससे वो तेल बाजार से कटने लगा. अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूसी तेल की खरीद लगभग बंद कर दी जिससे रूस को भारी झटका लगा. इसके बाद रूस ने एशिया को अपना बड़ा बाजार बना लिया और भारत चीन जैसे देशों को भारी मात्रा में तेल बेचने लगा।
युद्ध से पहले जहां भारत रूस से 2% से भी कम तेल खरीदता था, अब रूस भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है. भारत के कुल कच्चे तेल की खरीद में रूसी तेल का हिस्सा 40% से अधिक हो गया है।
तेल के बढ़ते दाम और रूस का प्राइस कैप से ऊपर तेल बेचना
रूसी तेल पर पश्चिमी देशों के प्राइस कैप का मतलब यह हुआ कि रूसी तेल का खरीददार अगर रूसी तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा पर खरीदेगा, तब वो पश्चिम की शिपिंग और बीमा सेवाओं का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा. इसी कारण प्राइस कैप लगने के बाद ही रूस ने पश्चिमी शिपिंग और बीमा कंपनियों का उपयोग काफी कम कर दिया है. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जिससे भी रूस को अपना तेल प्राइस कैप से ऊपर बेचने का बढ़ावा मिला है।