भोंपूराम खबरी। नामीबिया से 8 चीते पिछले महीने भारत आ गए। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को उन्होंने अपना नया बसेरा बना लिया है। लेकिन 12 चीते दक्षिण अफ्रीका में अपनी यात्रा का इंतजार कर रहे हैं। नामीबिया से 8 चीते पिछले महीने भारत आ गए। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को उन्होंने अपना नया बसेरा बना लिया है। लेकिन 12 चीते दक्षिण अफ्रीका में अपनी यात्रा का इंतजार कर रहे हैं। पिछले तीन महीने से क्वारंटाइन में रह रहे इन चीतों को लेकर अब विशेषज्ञ चिंता जाहिर कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बाड़े में बंद चीते तनाव में हैं और यदि जल्दी इन्हें निकाला नहीं गया तो शिकार करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।नामीबिया से 17 सितंबर को 8 चीते मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क लाए गए। इन्हें अभी 10 किलोमीटर के नियंत्रित इलाके में रखा गया है। 17 अक्टूबर से इन्हें 6 वर्ग किलोमीटर इलाके में जाने दिया जाएगा जहां उनके सामने शिकार के लिए जानवर भी होंगे। 3-4 महीने बाद उन्हें जंगल में छोड़ा जाएगा। भारत को इस साल 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से मिल सकते हैं। लेकिन दोनों देशों के बीच कागजी प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हो पाई है। पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर एक दक्षिण अफ्रीकी चीता एक्सपर्ट ने बताया कि अलग-अलग वाइल्ड लाइफ रिजर्व से लाकर 12 चीतों को रूइबर्ग में 50mx50m के बाड़े में रखा गया था। वेक्सीनेशन और रेडियो कॉलरिंग के बाद चीते कुनो जाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन दक्षिण अफ्रीका और बारत के बीच अभी तक एमओयू सााइन नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि नौकरशाही की देरी जंगल में चीतों के सफल स्थानांतरण को खतरे में डाल सकती है।
जानवरों को मारने के बाद डाला जा रहा है। यदि ऐसा जारी रहा तो वे खुद से जानवरों को मारना बंद कर देंगे। दिल्ली में रहने वाले चीता एक्सपर्ट फैयाज खुदसर ने कहा, ”लंबे समय तक इस तरह बाड़े में बंद रखने से चीते तनाव में आ जाते हैं। इससे उनको कई दिक्कतें आती हैं और जंगल में जीवित रहने की दर कम हो जाती है।” इसी तरह की चिंता वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के सीईओ अनीश अंधेरिया ने भी जाहिर की। उन्होंने कहा, ”बाड़ा पर्याप्त रूप से बड़ा होना चाहिए और मानवीय मौजूदगी से दूर हो। छोटे बाड़े तनाव बढ़ा देते हैं। अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक जंगली जानवरों को एक ही महीना बाड़े में रखना चाहिए क्योंकि उन्हें लंबे समय तक इसमें रखना उनके लिए अच्छा नहीं होता है। लंबे समय तक बाड़े में रखने के बाद उनके जंगल में जीवित रहने की दर घट जाती है।”
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के डीन और भारत में चीता प्रॉजेक्ट की अगुआई कर रहे वाईवी झाला ने कहा, ”यह (बाड़े में लंबे समय तक रखना) निश्चित तौर पर चीतों को प्रभावित करेगा। लेकिन हम इस समय कुछ नहीं कह सकते हैं। साउथ अफ्रीका मेटापॉपुलेशन प्रॉजेक्ट हेड विनसेट वान डेर मेरवे से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि समस्या हो सकती है। लेकिन उन्होंने आगे कुछ भी कहने से इनकार किया। दक्षिण अफ्रीका से वानिकी, मत्स्य पालन और पर्यावरण विभाग के प्रवक्ता अलबी मोदीसे ने कहा, ”मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि क्यों देर हो रही है और इनके लिए क्या समय निर्धारित किया गया था।”
पहचान सार्वजनिक नहीं किए जाने की अपील के साथ पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक सितंबर में यहां आए थे। हमें उन्होंने 12 चीतों को यहां लाए जाने को लेकर समयसीमा नहीं बताई है। कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है।” दक्षिण अफ्रीकी वैज्ञानिकों की एक टीम कूनो नेशनल पार्क का दौरा भी कर चुकी है। दक्षिण अफ्रीका से हर साल 10 चीते भारत लाए जाने की योजना है। कूनो नेशनल पार्क में इनके लिए तैयारी की जा रही है। एमओयू साइन हो जाता है तो साल के अंत तक चीतों को भारत लाया जा सकता है।