भोंपूराम खबरी,देहरादून। कर्ज लेना वैसे तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं समझा जाता, लेकिन लगभग ढाई दशक पहले अस्तित्व में आए उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए कर्ज लेना एक बड़ी मजबूरी है, क्योंकि नवगठित राज्य कर्ज के सहारे ही राज्य का विकसित एवं मजबूत स्थिति खड़ा कर पाते हैं।
यह अलग बात है कि उत्तराखंड के गठन के बाद राज्य में इंस्ट्रक्चर विकसित हुआ है और उसकी तुलना में कर्ज अधिक तेजी से बढ़ा है । उत्तराखंड की विकास दर पिछले 24 सालों के दौरान भले ही सुधरी हो, लेकिन राज्य का कर्ज भी दिनों दिन ऊंचे पहाड़ सा बढ़ता चला गया है। आज हालात यह हैं कि राज्य की स्थापना के समय उत्तराखंड को विरासत में मिला 4500 रुपए का कर्ज तकरीबन 20 गुना बढ़ गया है ।वित्तीय जानकारों का मानना है कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक उत्तराखंड का कर्ज बढ़कर इसकी जीडीपी के बराबर हो जाएगा। मानसून सत्र में विधानसभा पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में उत्तराखंड का कर्ज बढ़कर 72,860 करोड़ रुपये हो गया है ,जबकि 2018-19 में यह 58,000 करोड़ रुपये के करीब था। कर्ज में वृद्धि के साथ देनदारी का ग्राफ भी बढ़ रहा है, लेकिन सरकार के पुनर्भुगतान में तेजी लाने और प्राप्तियों में सुधार के लिए उठाई गए कदम के जो कदम परिणाम स्वरूपऋण पुनर्भुगतान अनुपात 72.07 प्रतिशत से बढ़ कर 91.84 प्रतिशततक पहुंच गया है और राज्य की जीडीपी के आकार और ऋण पुनर्भुगतान में तेजी के कारण ऋण का अनुपात जीडीपी के मुकाबले 24.08 प्रतिशत तक सीमित रहा है।रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड की जीडीपी पिछले पांच वर्षों में औसतन 6।71 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। वित्त वर्ष 2018-19 में जीडीपी 230,314 करोड़ रुपये थी, जो 2022-23 में 302,621 करोड़ रुपये हो गई। इस बीच राज्य में वेतन और पेंशन पर वचनबद्ध व्यय की वृद्धि दर 5.78 प्रतिशत रही, लेकिन 2022-23 में इसमें अचानक उछाल आया। त्रजिससे वचनबद्ध व्यय में 8.77 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है ।रिपोर्ट में यह भी उल्लेखित किया गया है कि लोक ऋण ;मार्केट लोनद्ध राज्य के कुल ऋण का बड़ा हिस्सा है ,जो कि वर्तमान में 56,510 करोड़ रुपये है। वैसे तो बढ़ते कर्ज के पीछे किसी राज्य के विकास कार्यों की बढ़ती रफ्तार छिपी होती है , लेकिन अयोजनागत मद में होती बढ़ोत्तरी उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है । इसके कारण जहां सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं पर असर पड़ता है, वहीं कई बार कर्मचारियों के वेतन को देने के लिए भी सरकार के सामने परेशानियां खड़ी होती हुई दिखाई देती हैं। इस मामले में सत्ता संभालने वाले राजनीतिक दल राजनीति करते हुए अधिक नजर आते हैं। उत्तराखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश को कर्ज के सागर में धकेलने के लिए के सत्ताधारी भाजपा जिम्मेदार है, क्योंकि उसी के कार्यकाल में सबसे ज्यादा कर्ज लिया गया है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ट्रिपल इंजन की बात कह कर राज्य के विकास के दावे करती रही है, लेकिन हकीकत में भाजपा सरकार वित्तीय रूप से राज्य को कोई लाभ नहीं पहुंच पाई । उधर उत्तराखंड पर बढ़ते कर्ज के बोझ को लेकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अपने ही तर्क हैं ।उत्तराखंड बीजेपी के अनुसार उत्तराखंड में बजट का आकार राज्य स्थापना के बाद से कई गुना बढ़ चुका है। इसी तरह राज्य की विकास दर भी राज्य स्थापना के दौरान जो थी, उससे कई गुना आगे बढ़ गई है। ऐसे में उत्तराखंड में भाजपा सरकार कर्ज को कम करने का प्रयास भी कर रही है और राज्य का रेवेन्यू बढ़ाने के भी प्रयास हो रहे हैं। राज्य का कर्ज लेने का जो राष्ट्रीय स्तर पर जो औसत डेटा है उससे कम कर्ज उत्तराखंड राज्य की तरफ से लिया गया है, जबकि ऐसे कई राज्य हैं, जहां उत्तराखंड से कई गुना ज्यादा कर्ज राज्य सरकारों द्वारा लिया गया है।