भोंपूराम खबरी,रुद्रपुर। बीते कुछ दिनों से रुद्रपुर कांग्रेस में चल रही उठापटक पूरे प्रदेश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांग्रेस में चल रही अंतर्कलह पर लोग चटखारे लेकर समाचार माध्यमों सहित सोशल मीडिया पर भरपूर मजे ले रहे हैं। पूर्व में इसी गुटबाजी के चलते कभी रुद्रपुर से चार बार विधायक रहे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलक राज बेहड़ चुनाव लड़ने किच्छा चले गये और यहाँ से दो बार हारने के बाद आखिरकार पाँचवीं बार वहाँ से विधायक बने। दरअसल रुद्रपुर कांग्रेस की बात करी जाए तो न ये पहली और न ही आखिरी बार है कि गुटबाजी सतह पर आई है। लेकिन यह जरूर पहली बार है कि इतनी निर्लज्जता से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति की जा रही है और मर्यादा व अनुशासन की सभी सीमा लांघी जा रही हैं।
असंतोष तो तेरह वर्ष पहले ही आरंभ हो गया था जब तत्कालीन विधायक बेहड़ से विमर्श किए बगैर तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष यशपाल आर्य ने हिमांशु गावा को नगर कांग्रेस का नगराध्यक्ष घोषित कर दिया था। लेकिन बेहड़ और गावा के दिल मिल गए और बात आई गई हो गई। अब इसके बाद दोनों के सलाहकारों ने अपने लाभ के लिए इनके बीच दबी हुई अहम की चिंगारी को हवा दी और कालांतर में रुद्रपुर कांग्रेस में अघोषित तौर पर दो गुट बन गए। बेहड़ से नाराज कार्यकर्ताओं ने हिमांशु के बंगले की रौनक बढ़ानी शुरू की तो बेहड़ समर्थकों ने भी समानांतर सत्ता शुरू कर दी। जगदीश तनेजा महानगर अध्यक्ष बने तो अपने संबंधों से हिमांशु भी पहले प्रदेश महासचिव और बाद मे कार्यकारी जिलाध्यक्ष का पद ले आए। आर्य के दोबारा कांग्रेस मे आने से हिमांशु को फिर से मजबूती मिली तो बेहड़ के किच्छा चले जाने व स्वास्थ्य कारणों से उनकी रुद्रपुर मे पकड़ कमजोर हुई। साथ ही भाजपा से शिव अरोरा के विधानसभा प्रत्याशी और तत्पश्चात विधायक बनने पर एक विशेष तबके के लोगों द्वारा बेहड़ का साथ छोड़ भगवा झंडे के तले जाना भी मानो परिपाटी बन गया। विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस प्रत्याशी मीना शर्मा की हार के बाद तो मानों सबने एक दूजे को नीचा दिखाने के लिए कमर कस ली। तनेजा पूर्व की ओर चलते तो गावा पश्चिम की ओर। शहर में पूर्व में ही रसातल में जा चुकी कांग्रेस को अब और गहरे गड्ढे में डालने के लिए किसी ने कोई कमी नहीं छोड़ी।
रसूख की लड़ाई यूं शुरू हुई मानों कांग्रेस विपक्षी दल न होकर सत्ताधारी पार्टी हो। ताज्जुब की बात यह है कि कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले जिले में पार्टी की जड़ों मे मट्ठा पड़ते देख आलाकमान को भी कोई फरक नहीं पड़ा। प्रदेशाध्यक्ष रुद्रपुर कार्यक्रम में आए लेकिन किड्नी प्रत्यर्पण के जटिल ऑपरेशन से उबरे अपने ही विधायक बेहड़ से मिलने उनके घर नहीं गए। उस पर तुर्रा यह कि बेहड़ को विश्वास मे लिए बगैर पार्टी के जिलाध्यक्ष और नगराध्यक्ष की घोषणा कर दी गई। गाव जिलाध्यक्ष बने तो सीपी शर्मा नगराध्यक्ष। गावा तो अनुभवी हैं परंतु नगराध्यक्ष पद के लिए पार्टी ने यह भी सोच विचार नहीं किया कि इन मनोनयन पर एक बार विमर्श किया जाता। बंगाली बाहुल्य ट्रांसिट कैम्प अथवा रमपुरा क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती। जिस भाजपा से लड़ने का ख्याल कांग्रेस पाले बैठी है उसे सीखना चाहिए कि भाजपा मे अनुशासन सबसे बड़ी चीज है। यहाँ तो अदना से कार्यकर्ता भी प्रेस कांफ्रेंस में एक दूसरे की धोती खोलने में लगे हैं।
छ साल अध्यक्ष रहने के बाद भी तनेजा की महत्वाकांक्षा इतनी बड़ी है कि वह किसी और को अध्यक्ष बंता देख नहीं पा रहे हैं। वहीं गावा की उंगली पकड़कर चलने वाले सीपी शर्मा अपने ही विधायक और तराई मे कांग्रेस कि राजनीति का केंद्र रहे बेहड़ पर आरोप लगा रहे हैं। बेहड़ के पुत्र भी पीछे नहीं रहे और ताल ठोंककर मैदान में प्रेस कांफ्रेंस करने या गए। अब आज तो अति हो गई जब हल्द्वानी के कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश और किच्छा के एक थके हुए कांग्रेसी नेता ने भी बेहड़ को नसीहत देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस कर डाली। कांग्रेस की इसी गुटबाजी के चलते हाल ही में कांग्रेस के युवा व कद्दावर नेता सुशील गावा ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। अपने बयान मे उन्होंने भी यह माना था कि बेहड़ के किच्छा चले जाने से रुद्रपुर में कांग्रेस नेतृत्व अक्षम हो चुका है। हालात इस कदर दयनीय हैं कि शहर मे बची खुची कांग्रेस को खत्म करने के लिए पुराने और नए पदाधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा भी इस सब तमाशे को देखकर खुश है और यह ते है कि जिस तरह कांग्रेस के नेता एक दूसरे को ललकार रहे हैं उससे आगामी निगम चुनाव मे कांग्रेस का सूपड़ा साफ होना तय है।
कांग्रेस की माया कांग्रेस के पदाधिकारी कार्यकर्ता ही जाने। पर यकीन जानिए जिस दौर में उन्हे सत्तारूढ़ भाजपा कि असफलता को निशाना बनाते हुए चुनाव दर चुनाव लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए थे ऐसे में जिस नूराकुश्ती में कांग्रेसी लगे हैं उससे पार्टी का पतन तय है।