भोंपूराम खबरी, रुद्रपुर। राज्य भर में हुई मूसलाधार बारिश को लगभग दस दिन बीत चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी इस आसमानी आफत से तबाह हुए तराई के लोगों के जख्मों पर फिलवक्त मरहम नहीं लग सका है। अपने आशियानों और मेहनत से जोड़े गए सामान को अपनी आँखों के सामने उजड़ता देखने वाले हजारों प्रभावितों की आँखें मदद की आस में पथरा सी गयी हैं। कुदरत द्वारा की गयी इस तबाही में जहां प्रशासन का घोर जिम्मेदाराना रवैया सामने आया है तो लोगों को राहत देने के नाम पर नेताओं की राजनीति ने भी प्रभावित लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।
इस भीषण बारिश और जलभराव से प्रदेश में धान का कटोरा कहलाये जाने वाले तराई के क्षेत्र में लगभग पैंतालीस हजार हेक्टेयर जमीन में लगी फसल का नुकसान हुआ है। ऐसा पहली बार नहीं है कि इस क्षेत्र में बारिश मुसीबत बनकर बरसी हो। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण जो तबाही के मंजर इस बार दिखे ऐसा बीते चार दशकों में देखने को नहीं मिला। सत्तर साल के नगर निवासी ओमप्रकाश मुंजाल कहते हैं कि 1970 में ऐसी ही बारिश में किच्छा मार्ग पर कल्याणी नदी का पुल भरभरा कर गिर गया था। लेकिन तब भी नुकसान इलाके विशेष तक सीमित था। इसके अलावा साल 1990 में दस दिन लगातार हुई बारिश ने भी खासा नुकसान किया था। मुंजाल कहते हैं कि इस बार तो कुदरत का कहर पूरे क्षेत्र पर बरपा है और ऐसी तबाही उन्होंने पहले नहीं देखी। ज्ञात हो कि 18 अक्टूबर को क्षेत्र में दो सौ मिमी से भी अधिक बारिश हुई लेकिन मामला रात बारह बजे बिगड़ा जब औपचारिक चेतावनी के कुछ मिनट बाद तराई क्षेत्र में लगभग सभी बांधों में एकत्र पानी छोड़ दिया गया। लोग घरों में दुबके थे लेकिन एकाएक रुद्रपुर शहर के कई स्थानों पर छह से लेकर दस फुट पानी भर गया। निचले इलाके जलमग्न हुए तो लोग अपने सामान छोड़कर जान बचाने को भाग खड़े हुए। सैकड़ों की संख्या में पालतू जानवर काल के गाल में समा गए। अब प्रशासन लाख सफाइयां दें मगर यह सत्य छुपाया नहीं जा सकता कि निगम व जिला प्रशासन की नाकामी से हजारों लोगों को ऐसे हालातों से दो-चार होना पडा जिनसे थोड़ी से सावधानी बरतने पर बचा जा सकता था।
राज्य के मौसम विभाग ने लगभग पूरे प्रदेश में ही बारिश में मद्देनजर रेड अलर्ट जारी किया था। लेकिन प्रशासन ने न ही नदी किनारी बसी दर्जनों कालोनियों से लोगों को हटाया और न ही उनके विस्थापन के लिए पहले से ही कोई व्यवस्था की। इसके अतिरिक्त डैमों के भरने की स्थिति में जल निकासी करने के खतरों से भी लोगों को समय से आगाह नहीं किया गया। इसके बाद जो मंजर तराई में देखने को मिला वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। भारी बारिश और प्रशासन की लापरवाही के कारण लोगों को करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। यही नहीं रुद्रपुर नगर निगम के जो प्रतिनिधि व कर्मचारी आये दिन निर्माण कार्यों के फीते काटने की गलाकाट प्रतियोगिता में लगे रहते हैं उन सबके विकास के दावों की पोल इस बारिश ने खोल कर रख दी।
लगभग छत्तीस घंटे की बारिश थमने के बाद शहर के विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग राहत कार्यों के लिए निकले। लेकिन विद्रूप यह था कि राशन, बिस्किट, कंबल आदि के नाम पर मदद करने वाले इन लोगों ने गरीबों की तबाही का मजाक ही उड़ाया। कुछ हजार रुपये की सहायता वितरित करने के साथ ही गरीबों को भोजन आदि वितरित करने के अपने फोटो मीडिया को भेजकर इन्होने उन गरीबों के जख्मों पर तेज़ाब छिड़कने का काम किया। इसके बाद राहत राशि के रूप में शासन की ओर से भेजे गए मात्र अड़तीस सौ रुपये के चेकों के साथ भी प्रभावितों की फोटो खींचकर मीडिया में छपवाई गयी। यह विडम्बना है कि जहाँ हजारों लोग अपने परिवारों के लालन-पोषण से गए और सैकड़ों की तादात में व्यापारी तबाह हुए तो वहां भी यह राजनेता सहानुभूति के नाम पर राजनीति करते दिखे।
अलबत्ता ऐसा नहीं है कि सभी मददगार ऐसा ही कर रहे थे। कुछ फ़रिश्ते ऐसे भी थे जिन्होंने एक हाथ से मदद की तो दूसरे हाथ को पता नहीं लगने दिया। नाम न छापने की शर्त पर बारह सिखों के एक दल ने बताया कि उन्होंने शहर की एक कालोनी में सामुदायिक भवन में लगभग पचास परिवारों को रेस्क्यू कर ठहराया और उनके भोजन, कपडे सहित इन परिवारों के बच्चों की किताबों और स्कूल की फीस की भी मदद की। इसी तरह श्री राम नाटक क्लब से जुड़े एक समाजसेवी 18 अक्टूबर की रात डेढ़ बजे ही पीड़ितों की मदद करने निकल पड़े और कई लोगों की जान बचायी। इसके बाद उन्होंने लगभग एक लाख रुपये से लोगों को राशन आदि की व्यवस्था की। जिंदगी जिंदाबाद संस्था के सदस्य रातदिन लोगों किस ईवा में जुटे रहे और अब भी लगे हुए हैं। जिले के पुलिस बल ने भी तत्परता दिखाते हुए हजारों लोगों व मवेशियों की जान बचायी। यहाँ निगम के स्वच्छकों ने भी रातदिन की परवाह किया बगैर शहर की सफाई व्यवस्था दुरुस्त की ताकि महामारी न फ़ैल पाए।
इस पूरे घटनाक्रम में जहाँ प्रकृति ने मनुष्य को बहुत छोटा होने का एहसास कराया तो प्रशासनिक विफलता भी खुलकर सामने आई। इसके अलावा राजनीतिक दल के नेताओं की निर्लज्जता भी सबने देखी। अब यह भविष्य के गर्भ में है कि शासन-प्रशासन किस तरह तराई में इस आपदा से प्रभावित लोगों को उनके पुराने दिन वापस देने का प्रयास करता है और यह कवायद क्या रंग लाती है। लेकिन यह तय है कि इस तबाही को आने वाली पुश्तें भी याद रखेंगी।