भोंपूराम खबरी,काशीपुर। उत्तराखंड में नशा मुक्ति केंद्रों को अब कानून के दायरे में बांधने की तैयारी है। सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। अभी तक नशा मुक्ति केंद्रों के लिए जो गाइडलाइन थी, उसका अनुपालन नहीं हो रहा था। इसे देखते हुए सरकार ने केंद्र सरकार से अनुमति लेने के बाद मेंटल हेल्थ केयर एक्ट लागू करने का निर्णय किया है। एक्ट प्रारूप को अंतिम रूप दिया जा रहा है। एक्ट के तहत मानसिक स्वास्थ्य केंद्र व संस्थानों को राज्य मेंटल हेल्थ केयर अथारिटी में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। एक्ट का उल्लंघन करने वालों पर 50 हजार से लेकर दो लाख रुपये तक का अर्थदंड लगाया जा सकेगा। वर्तमान में राज्य में नशा मुक्ति केंद्रों के संचालन को लेकर कोई निश्चित मानक नहीं बने हैं। जिलाधिकारी अपने-अपने स्तर से इनके संचालन को गाइडलाइन जारी करते हैं। गाइडलाइन को लेकर नशा मुक्ति केंद्र संचालकों का तर्क यह रहता है कि इस की जा रही थी | तरह की गाइडलाइन उन पर सीधे लागू नहीं होती। ऐसा कर संचालक’ जिम्मेदारी व जवाबदेही से बचते रहे हैं। नशा मुक्ति केंद्रों में सही प्रकार के भवन नहीं होने, चिकित्सकों की तैनाती और प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की कमी के कारण भी उनकी कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं। केंद्रों में मरीजों को प्रताड़ित करने के भी कई मामले सामने आए हैं। यहां तक कि कई बार मरीजों की मौत भी हुई है। राज्य में बीते 10 वर्ष के भीतर सैकड़ों नशा मुक्ति केंद्र खुले नियमित अंतराल पर नशामुक्ति केंद्रों की शिकायतें मिलने से शासन-प्रशासन के सामने व्यवस्था बनाने समस्या पेश आई। अब मेंटल हेल्थ केयर एक्ट को इन सभी समस्याओं के समाधान के तौर पर देखा जा रहा है। देर से ही सही, लेकिन सरकार ने नशा मुक्ति केंद्रों को कानून की परिधि में लाने का फैसला तो किया। इससे नशा मुक्ति केंद्रों के संचालन को सुव्यवस्थित, इलाज को अच्छा और प्रबंधकों को जिम्मेदार व जवाबदेह बनाया जा सकेगा।