Friday, October 31, 2025

चुनाव जीतने के बाद आखिर क्यों बदल जाता है जनता के प्रति नेताओं का रवैया। डोर टू डोर जनता के बीच हाथ जोड़कर वोट मांगने वाले नेता भूल जाते हैं अपने पद की गरिमा 

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संवाददाता राजेश पसरिचा की रिपोर्ट!!

भोंपूराम खबरी। लोकतंत्र में चुनावी मौसम के दौरान नेता जनप्रतिधि डोर टू डोर जनता के बीच पहुंच अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करते हुए खुद को जनता का सच्चा सेवक बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते। चुनावी मैदान में उतरे नेता खुद को ईमानदार, विकास कार्यों के प्रति जिम्मेदार होने के दावे करते हुए देखे जा सकते हैं। तो वहीं कई नेता अपने समर्थकों के साथ दिन रात पसीना बहाते हुए सड़कों पर गली मोहल्लों में देखे जाते हैं। लेकिन चुनाव संपन्न होने के बाद विजय हासिल करने वाले नेताओं की चंद दिनों में ही ईमानदारी जिम्मेदारी कहां लुप्त हो जाती है। यह कोई नहीं समझा पाया। जनता के बीच पहुंच कर पांव छूने वाले कुछ नेताओं का रवैया इस कदर बदल जाता है जैसे वह अपने क्षेत्र में किसी को जानते तक नहीं हैं और तो और जीतने वाले नेताओं जनप्रतिधियों के निजी सचिव या अन्य कर्मचारियों तक का रवैया भी कुछ अलग ही देखने को मिलता है। जबकि कई नेता जनप्रतिनिधि ऐसे भी हैं जो स्वयं आम जनता के बीच पहुंच सीधे संवाद कर समस्याओं को सुनते हुए देखे गए हैं। लेकिन कुछ तानाशाही नेताओं जनप्रतिधियों की हेकड़ी इतनी बड़ जाती है कि वह स्वयं को ही सबसे बड़ा नेता समझने लगते हैं। जिससे आम आदमी के सम्मान पर भी चोट लगना स्वाभाविक है। जबकि किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए आम जनता का सम्मान कर समस्याओं को सुनते हुए मदद करनी चाहिए। जो कि एक ईमानदार और जिम्मेदार नेताओं की पहली जिम्मेदारी है। लेकिन आज कई नेताओं ने अपनी विजय हासिल करने के बाद जनता के बीच जाना तो दूर अपने दफ्तरों में भी मिलने से परहेज करने लगते हैं।

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