
भोंपूराम खबरी,बिजनौर। धामपुर क्षेत्र के रैनी जंगल से जो तस्वीर आई, वह पक्षी प्रेमियों के लिए बड़ा सुखद संदेश है। जिले में 30 साल बाद ऐसा मौका है, जब आबादी क्षेत्र के पास 100 से ज्यादा गिद्ध एक साथ बैठे दिखाई दिए। अब तक केवल यह गिद्ध केवल अमानगढ़ के रिजर्व फॉरेस्ट में ही दिखाई दे रहे थे। वहीं अब जिस जगह पर यह झुंड दिखा है, वह अमानगढ़ से 50 किलोमीटर दूर है।

जिले में तीस साल पहले तक काफी गिद्ध गांवाें के आसपास दिख जाते थे। वर्ष 2000 आते-आते आबादी के पास से लगभग गिद्ध विलुप्त ही हो गए। जिले में अमानगढ़ के रिजर्व फॉरेस्ट में ही इनका बसेरा रह गया। गणना रिपोर्ट की माने तो वहां भी इनका संख्या केवल 165 ही है। बिजनौर डिवीजन में यह अकेली ऐसी रेंज है जहां पर गिद्धों की मौजूदगी है। उधर धामपुर रेंज के रैनी जंगल में मुकीमपुर के पास जब बृहस्पतिवार को वनकर्मी गश्त कर रहे थे, तो उन्हें वहां गिद्ध बैठे दिखे। नजदीक जाकर देखा तो वहां करीब 100 गिद्ध थे। यह भारतीय गिद्ध कहलाए जाते हैं।
गिद्धों का प्राकृतवास भी कम हुआ था
पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो गिद्ध ऊंचे पेड़ों पर अपना घोंसला बनाते हैं। इनका सबसे पसंदीदा आवास सेमल के पेड़ होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में सेमल के पेड़ों का कटान हुआ है। जिससे गिद्धों का प्राकृतिक आवास छिन रहा है। पर्यावरणविदों और पक्षी प्रेमियों का यह मानना है कि गिद्घों और दूसरे परिंदों को बचाने के लिए पेड़ों को बचाया जाना बेहद जरूरी है।
गिद्धों के कम होने के लिए डाइक्लोफिनेक जिम्मेदार
90 के दशक तक गिद्धों की संख्या हजारों में थी। आबादी के आसपास भी गिद्ध बड़ी संख्या में देखने को मिल जाते थे। पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि डाइक्लोफिनेक दवा का इस्तेमाल कर चुके पशुओं की किसी कारण से मौत हो जाने पर उसका मांस खाने से गिद्धों की मौत हो रही थी। डाइक्लोफिनेक दवा के दुष्प्रभाव से गिद्धों की संख्या में आ रही कमी से चिंतित सरकार ने इस दवा को प्रतिबंधित कर दिया था। वर्ष 2000 तक 95 से 98 प्रतिशत गिद्ध कम हो चुके थे, केवल आरक्षित वन क्षेत्रों में ही अब गिद्ध देखने को मिल जाते हैं।
यह बहुत सुखद है। आबादी में गिद्धों की सख्या बढ़ रही है। यह सुधरते पारिस्थितिकी तंत्र का संदेश है। वन विभाग गिद्धों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रयास कर रहा है।
– ज्ञान सिंह, डीएफओ बिजनौर