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Friday, September 20, 2024

जल्द बढ़ा बदलाव आएगा जलवायु परिवर्तन में

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भोंपूराम खबरी।

जल्द बढ़ा बदलाव आएगा जलवायु परिवर्तन में

हाल में हुए शोध ने मौसम वैज्ञानिकों को बढ़ी चिंता में डाल दिया है। इसकी वजह तेजी से पिघलती अंटार्कटिक ग्लेशियर हैं। जिसे देख वैज्ञानिकों का अनुमान है कि निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन में बढ़ा बदलाव आएगा। भविष्य के मौसम के लिए यह अच्छी खबर नही है। हाल के शोध में यह जानकारी सामने आई है। इस खबर ने मौसम वैज्ञानिकों को बढ़ी चिंता में डाल दिया है।

भूरे रंग में बदला समुंद्र का पानी

फरवरी में मौसम विशेषज्ञों ने पश्चिमी अंटार्कटिका के तट पर एक आइसब्रेकर को देखा । ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण (बीएएस) के साथ एक समुद्री भूभौतिकीविद् रॉबर्ट लार्टर डेक पर यह चौंकाने वाला नजारा देखा देखने को मिला था। उनकी नजर समंदर में जहां तक पहुंची, वहां के पानी का रंग भूरे रंग में रंग चुका था। इसकी पुष्टि करने के लिए उपग्रह की मदद ली गई और अन्य का सर्वेक्षण से भी इसका जायजा लिया गया। यह खबर समुन्द्र के साथ जलवायु में आने वाले बदलावों के लिए कतई ठीक नही थी, जो भविष्य के लिए एक खतरे की घंटी के रूप में नजर आ रही है।

लंबे समय के लिए होगा ये बढ़ा बदलाव

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बदलाव थोड़ा समय के लिए नही है, बल्कि लंबे समय के लिए आने वाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के कई अध्ययनों के अनुसार अप्रत्याशित और अशुभ प्रभाव हो सकता है। घटती समुद्री बर्फ रॉस गाइरे नामक समुद्री भंवर की धारा को बढ़ा कर सकती है। यह समुद्री धारा गर्म पानी को समुंद्र से लगे जमीन के करीब लाती है और पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ की चादर के खतने को तेज कर सकती है। वैज्ञानिक कहते है कि समुद्र चक्र से अपेक्षित गर्म पानी और हिमनद पिघल पहले से ही वैश्विक महासागर के संचालित करने की गति को धीमा करने के बढ़े संकेत पहले से ही मिल रहे हैं।

जितनी बर्फ तीस साल में नही पिघली उससे अधिक तीन साल में पिघल गई

समुंद्र में कन्वेयर बेल्ट भी प्रभावित हो रही है। यह बेल्ट तापमान को विभाजित करता है और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है। वैज्ञानिकों ने इसे बेहद गंभीर माना है और भविष्य में बुरे परिणाम की चेतावनी भी दी है। आर्कटिक की बर्फ जितनी तीन दशक में नही पिघली, उतनी तीन साल में पिघल चुकी है। इससे निश्चित ही भविष्य में जलवायु को लेकर कई दुष्परिणाम सामने आने की आशंका वैज्ञानिकों ने जताई है। यह शोध कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट विज्ञान पत्रिका प्रकाशित हुआ है।

श्रोत: अर्थ स्काई।

फोटो : अर्थ स्काई।

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