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Sunday, December 22, 2024

ऋतु बदली मगर किसानों का हौसला नहीं 

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भोंपूराम खबरी,रुद्रपुर। दिल्ली की सीमाओं पर मुख्यतः तीन जगह चल रहे किसान आंदोलन को आज 100 दिन पूरे हो जाएंगे। आंदोलन हाड़ कंपाते जाड़े के मौसम में शुरू हुआ था। भले ही ऋतु परिवर्तन हो गया हो मगर इन सीमाओं पर डटे लाखों किसानों के जज़्बे में कोई बदलाव नहीं आया है। आन्दोलन को और लंबा खिंचता देख अब किसान गर्मियों की तैयारियों में जुटे हैं। तराई के क्षेत्र से भी हजारों किसान इस आन्दोलन में सहभागिता कर रहे हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर अब बांस-बल्लियों के तंबुओं की जगह, स्टील के ढांचे और इन पर तंबू बांधे जाने की क़वायद शुरू हो चुकी है। कई टेंटों में एसी और कूलर लगाने का काम भी ज़ोरों से चल रहा है।

ज्ञात हो कि मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि क़ानून पारित किये जाने के बाद किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। छब्बीस नवम्बर को दिल्ली कूच के आह्वान के साथ ही सरकार के खिलाफ आन्दोलन का बिगुल फूंक दिया गया। जहाँ पंजाब और हरियाणा के किसानों ने सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर धरना शुरू कर दिया तो तराई व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने गाजीपुर सीमा पर डेरा जमा लिया। आरम्भ में लगा कि यह आन्दोलन कुछ दिन चलेगा और सरकार अथवा किसान पक्ष में से एक झुक जाएगा। मगर न ही सरकार और न ही किसान पीछे हटे। कई दौर की वार्ता के बाद भी कोई हल नहीं निकला। इसके बाद सरकार लगभग 18 संशोधन के साथ इन कानूनों को नए सिरे से पारित करने को तैयार हुई लेकिन किसान कानून वापसी की मांग पर अडिग रहे। यहाँ तक कि सरकार ने इन कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने तक का प्रस्ताव दे दिया। इसे भी अस्वीकार करते हुए किसानों ने कहा कि वह इन कानूनों से निजात पाना चाहते हैं। दरअसल किसानों का मानना है कि यह कानून चंद पूंजीपतियों को लाभ देने के उद्देश्य से लाये गये हैं। किसानों का यह आरोप तब सही भी लगता है जब सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून बनाने को तैयार नहीं है। इसके अलावा देश के प्रमुख उद्योग घरानों द्वारा कानून पारित होने से पहले ही देश में हजारों एकड़ के गोदाम निर्मित कर लेना सिद्ध करता है कि कानून लाये जाने के पीछे की मंशा पूरी तरह सही नहीं है।

आन्दोलन में लगभग 260 किसान काल-कलवित हो चुके हैं मगर धरनारत किसानों की हिम्मत में कोई कमी नहीं आई है। बीते दिनों शहर में किसान महापंचायत को संबोधित करते संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि आन्दोलन अभी कई महीनों तक और खींचने का दम किसानों में है। हालाँकि गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों की ट्रेक्टर रैली के दौरान दिल्ली के लाल किला में हुई हिंसा से एकबारगी आन्दोलन डगमगाता दिखा। आन्दोलन स्थलों से भीड़ भी कम हुई। मगर गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत की आँखों से आँसू क्या निकले कि जनसैलाब उमड़ पडा और पहले से भी अधिक भीड़ गाजीपुर में एकत्र हो गयी। फिलहाल इस आन्दोलन का भविष्य साफ़ नहीं है लेकिन यह तय है कि किसान जल्द पीछे हटने वाले नहीं हैं। नए कृषि क़ानूनों के भविष्य को लेकर असमंजस की स्थिति ज़रूर है मगर जैसे-जैसे समय बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आन्दोलन और भी ज़्यादा व्यापक और मज़बूत होता दिख रहा है।

अब किसानों को नहीं लगता है कि आंदोलन जल्द ख़त्म होगा और सरकार उनकी माँगें मानेगी। हमने अब गर्मियों के लिए तैयारी शुरू कर दी है। ऐसी ट्रॉलियां बनायी गयी हैं जिन्हें प्लाई बोर्ड से घेरकर एसी लगा दिए गए हैं। गाजीपुर अब एक उप नगर में तब्दील हो गया है। ट्रॉलियों में लोग ‘घर’ की तरह रह रहे हैं। टेंट भी घरों की तरह ही बना दिए गए हैं। कहीं बड़ी वाशिंग मशीनें लगी हैं, तो कहीं ठंडे पानी की मशीने। सड़कों पर निशुल्क जूते-चप्पलों और कपड़े की दुकानें भी लगा दी गयी हैं। आन्दोलन जितने दिन भी खिंच जाए, हम तैयार हैं।  तेजेंद्र सिंह विर्क, अध्यक्ष तराई किसान सभा

छह मार्च को आन्दोलन के सौ दिन पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा ने विरोध प्रदर्शन के कई आयोजनों की रूप रेखा तैयार की है। छह मार्च से आंदोलन का स्वरुप भी बदल जाएगा। ‘केएमपी एक्सप्रेसवे’ की पाँच घंटों तक नाकाबंदी की जाएगी जो सुबह 11 बजे से शुरू होकर शाम के चार बजे तक चलेगी। दूसरे राज्यों में भी किसान छह मार्च को प्रदर्शन करेंगे और नए कृषि क़ानूनों के विरोध में काली पट्टियां लगाएंगे। आठ मार्च को महिला दिवस के दिन, पूरे भारत में किसानों के विरोध स्थलों का संचालन महिलाओं के हाथ में होगा। जगतार सिंह बाजवा, प्रवक्ता गाजीपुर आन्दोलन समिति

हम तराई से लगभग पांच हजार किसान गाजीपुर बॉर्डर पर कई महीनों से बैठे हैं। सरकार सोचती है कि अनदेखी करने से किसान थक जायेंगे और वापस चले जायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं होगा। जब तक हमारी माँगें पूरी नहीं होती हैं तब तक हम आंदोलन करते रहेंगे। नवजोत सिंह खैरा, किसान नेता

तीन महीने पहले जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो इसे सिर्फ़ पंजाब के किसानों के आंदोलन के रूप में ही देखा जा रहा था। लेकिन जब राकेश टिकैत की भारतीय किसान यूनियन इस आन्दोलन में शामिल हुई तो कहा जाने लगा कि ये पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक इलाक़ों के किसानों का आंदोलन है। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली की सड़कों और लाल क़िले पर हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद आंदोलन को लेकर कई सवाल उठे। किसानों को बुरे नामों से पुकारा गया और आन्दोलन को बदनाम करने की कोशिश हुई। 26 जनवरी की घटना भी किसानों के ख़िलाफ़ साज़िश थी। ……… कर्म सिंह पड्डा, प्रदेशाध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन

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