भोंपूराम खबरी। नेपाल ने उत्तराखंड के लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी का मुद्दा फिर उठाया है। अब प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने भी इन तीनों क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताया। कहा कि इस मामले में नेपाल का रुख पूरी तरह दृढ़ है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कार्यकाल में भी नेपाल इन क्षेत्रों पर अपना दावा कर चुका है। देउबा ने कहा कि हमारा देश तटस्थ विदेश नीति पर चलता रहा है। नेपाल सरकार ने हमेशा राष्ट्रीय हित को सामने रखा है। पड़ोसियों और अन्य देशों से जुड़े मुद्दों में हम आपसी लाभ की नीति पर चलते हैं। सरकार अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती है। देउबा ने कहा, सीमा का मुद्दा एक संवेदनशील मामला है। हम समझते हैं कि इन मुद्दों का समाधान संवाद के माध्यम से निकाला जा सकता है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए हम राजनयिक चैनलों के प्रयास कर रहे हैं। बता दें कि भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल ने चाल चलते हुए 20 मई 2020 को कैबिनेट में नए नक्शे को पेश किया था। जिसे नेपाली संसद की प्रतिनिधि सभा ने 13 जून को अपनी मंजूरी दे दी थी। इसमें भारत के कालापानी, लिपु लेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है। वहीं भारत ने इसका विरोध करने के लिए नेपाल को एक डिप्लोमेटिक नोट भी सौंपा था। इसके अलावा, भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के नए नक्शे को एतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ भी करार दिया था। नेपाल के इस कदम से भारत के साथ उसके रिश्तों पर गहरा असर पड़ रहा है। भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा। विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि इस सीमा विवाद का हल बातचीत के माध्यम से निकालने के लिए आगे बढ़ना होगा। इसके बाद नेपाल ने पिथौरागढ़ से सटे बॉर्डर पर बरसों पुराने एक रोड प्रोजेक्ट को शुरू करवा दिया। यह रोड रणनीतिक रूप से अहम है और उसी इलाके में है जहां पर नेपाल अपना कब्जा बताता रहा है।