
भोंपूराम खबरी। उत्तराखंड की ठिठुरती ठंड के बीच अंकिता भंडारी हत्याकांड एक बार फिर उस मुकाम पर आ खड़ा हुआ है, जहाँ न्याय की गुहार और सत्ता के गलियारों की साजिशें आमने-सामने हैं। इस मामले में ताज़ा उबाल तब आया जब ज्वालापुर के पूर्व भाजपा विधायक सुरेश राठौर की कथित पत्नी उर्मिला ने एक वीडियो जारी कर शासन और प्रशासन की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। उर्मिला का यह वीडियो सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है, जिसमें उन्होंने न केवल जांच प्रक्रिया को घेरा है बल्कि सीधे तौर पर साक्ष्यों को नष्ट करने के संगीन आरोप भी लगाए हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद प्रदेश की राजनीति में एक ऐसा भूचाल आया है जिसने भाजपा की पूर्व जिला पंचायत सदस्य आरती गौड़ को प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।

आरोपों की इस झड़ी में सबसे संवेदनशील दावा उस कमरे को लेकर है, जहाँ अंकिता की हत्या की बात कही गई थी। उर्मिला ने अपने वीडियो और बयानों में आरोप लगाया है कि आरती गौड़ की शह पर उस महत्वपूर्ण कमरे पर बुलडोजर चलवा दिया गया ताकि हत्याकांड से जुड़े तमाम वैज्ञानिक साक्ष्य हमेशा के लिए खत्म हो जाएं। हालांकि आरती गौड़ ने इन आरोपों के बीच खुद को निर्दोष बताते हुए जांच पूरी होने तक पार्टी से दूरी बनाने का फैसला किया है, लेकिन इस ‘बुलडोजर एक्शन’ ने जनता के मन में संदेह का गहरा बीज बो दिया है। यह सवाल हवा में तैर रहा है कि आखिर वह कौन सी ताकत थी जो जांच पूरी होने से पहले ही अपराध स्थल को मिटा देने के लिए इतनी उतावली थी।
मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब पूर्व विधायक सुरेश राठौर और उर्मिला के बीच की बातचीत का एक कथित ऑडियो सार्वजनिक हुआ। इस ऑडियो में सुरेश राठौर के हवाले से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम का नाम इस हत्याकांड से जोड़ा जा रहा है। ऑडियो में कथित तौर पर यह दावा किया गया है कि जिस रात अंकिता के साथ यह जघन्य कृत्य हुआ, उस रात भाजपा के यह कद्दावर नेता उसी रिजॉर्ट में मौजूद थे। आरोप है कि अनैतिक फरमाइशों और आपसी विवाद के चलते इस घटना को अंजाम दिया गया। यदि इन आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई है, तो यह उस वीवीआईपी की मौजूदगी की पुष्टि करता है जिसे बचाने के लिए शुरू से ही पूरी मशीनरी पर आरोप लगते रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण ने अंकिता भंडारी केस को एक नए और बेहद पेचीदा मोड़ पर खड़ा कर दिया है। एक तरफ कोर्ट ने मुख्य आरोपियों को सजा सुना दी है, वहीं दूसरी तरफ अपनों के बीच से ही उठ रहे ये आरोप और वीडियो संदेश शासन की शुचिता पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। पूर्व विधायक की कथित पत्नी का सामने आना और बड़े नेताओं के ऑडियो-वीडियो होने का दावा करना यह संकेत देता है कि इस हत्याकांड के पीछे के कई काले अध्याय अभी भी जनता की नजरों से ओझल हैं। अब देखना यह होगा कि क्या ये नए आरोप केवल आपसी रंजिश का हिस्सा हैं या फिर अंकिता को न्याय दिलाने की दिशा में उस ‘छिपे हुए सच’ की पहली आहट।
निष्कर्ष के तौर पर, उर्मिला के वीडियो और ऑडियो में किए गए दावे यदि सत्य की कसौटी पर परखे जाते हैं, तो यह उत्तराखंड की राजनीति का सबसे बड़ा खुलासा साबित हो सकता है। यह मामला अब केवल एक आपराधिक जांच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह उन सबूतों की तलाश बन गया है जिन्हें रसूख की मशीनरी ने बुलडोजर के नीचे दबाने की कोशिश की थी। जब तक इस ‘वीवीआईपी’ की भूमिका और साक्ष्य मिटाने वालों के असली इरादे स्पष्ट नहीं होते, तब तक देवभूमि का यह जख्म भरने वाला नहीं है।


