
भोंपूराम खबरी। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के देहुली गांव में 44 साल पहले हुए एक बड़े नरसंहार मामले में अदालत ने तीन लोगों को दोषी ठहराया है। इस घटना में सात महिलाओं और दो नाबालिगों सहित 24 दलितों की हत्या कर दी गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर यह मुकदमा मैनपुरी जिले की अदालत में स्थानांतरित किया गया था। मुकदमे के दौरान 13 आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि एक अब भी फरार है।

आरोपियों ने घरों में घुसकर परिवार के सदस्यों की हत्या की थी
यह घटना 18 नवंबर 1981 को हुई थी, जब एक गिरोह के सदस्यों ने देहुली गांव पर हमला कर दिया था। आरोपियों ने घरों में घुसकर परिवार के सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी और लूटपाट की थी । पुलिस जब तक गांव पहुंची, हमलावर फरार हो चुके थे। बताया जाता है कि इस हमले का मकसद ग्रामीणों को डराना था, क्योंकि कुछ लोगों ने एक आपराधिक गिरोह के खिलाफ गवाही दी थी।
अदालत ने मंगलवार को इस मामले में राम सेवक, कप्तान और रामपाल को दोषी ठहराया। राम सेवक को जेल से अदालत में पेश किया गया, जबकि कप्तान को दोषी पाए जाने के बाद हिरासत में ले लिया गया। रामपाल अदालत में मौजूद नहीं था, इसलिए उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। अदालत 18 मार्च को दोषियों की सजा पर फैसला सुनाएगी।
दोषियों को हत्या ( IPC 302), हत्या के प्रयास (307), आपराधिक साजिश (120बी), अपराधियों को शरण देने (216) और घातक हमले के इरादे से घर में घुसने (449, 450) जैसी धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया है। अभियोजन पक्ष ने बताया कि इस हत्याकांड से करीब डेढ़ साल पहले एक पुलिस मुठभेड़ हुई थी, जिसमें देहुली गांव के चार लोग गवाह थे। इस गिरोह के अधिकतर सदस्य ऊंची जाति से थे।
इस घटना के कुछ हफ्तों बाद 30 दिसंबर 1981 को पास के साधुपुर गांव में भी इसी तरह का हमला हुआ था। इस बार डकैत अनार सिंह यादव के गिरोह ने 10 दलितों की हत्या कर दी, जिनमें छह महिलाएं शामिल थीं। यह मामला भी लंबे समय तक चला, लेकिन देहुली हत्याकांड में अब जाकर अदालत का फैसला आया है।