Friday, November 28, 2025

नीब करौरी महाराज का 125 वां जन्मोत्सव आज, जानिए कैंची धाम वाले बाबा के बारे में

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भोंपूराम खबरी। आज बाबा नीब करौरी महाराज का 125वां जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। 30 नवंबर 1900 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में बाबा का जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार सन् 1900 में बाबा का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी पर हुआ था। हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर धूम-धाम से बाबा का जन्म मनाया जाता है। 125वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान, सत्संग, भंडारे और हवन किए जा रहे हैं। बाबा की जन्मस्थली पर भी विशेष आयोजन किया गया है।

लक्ष्मी नारायण से नीब करौरी महाराज तक जीवन की अद्भुत यात्रा

बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। पिता पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा और माता कौशल्या देवी ने उन्हें संस्कारों और आध्यात्मिक माहौल से समृद्ध बचपन दिया। 10 वर्ष की आयु में वे बनारस गए, जहां उन्होंने वेद और व्याकरण का गहन अध्ययन किया। इसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया। 11 वर्ष में उनका विवाह रामबेटी से हुआ, परंतु 13 वर्ष की अल्पायु में वे घर छोड़कर साधना पथ पर निकल पड़े। गुजरात, बवानिया, नीब करौरी और जंगलों में साधना के दौरान वे लक्ष्मणदास, तलैया बाबा, हांडी वाले बाबा, तिकोनिया बाबा, चमत्कारी बाबा जैसे नामों से विख्यात हुए। 17 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अलौकिक सिद्धियां प्राप्त कर ली थीं। बाद में वे गृहस्थ जीवन में भी लौटे और पत्नी अम्मा रामबेटी के साथ जिम्मेदारियां निभाईं।

शिक्षा, समाज और सेवा – बाबा का जीवन संदेश

बाबा केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि समाजसेवी भी थे। स्त्री-पुरुष समानता, गरीबों की मदद और सामाजिक न्याय उनके जीवन का मूल सिद्धांत रहा। नैनीताल जिले में उन्होंने हनुमानगढ़ी मंदिर, भूमियाधार, कैंचीधाम और काकड़ीघाट में हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की।

दुनिया भर में बाबा का प्रभाव – स्टैनफोर्ड से हार्वर्ड तक

बाबा का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। हार्वर्ड के डॉ. रिचर्ड अल्पर्ट (रामदास), गायक कृष्णदास, लैरी ब्रिलिएंट सहित कई अंतरराष्ट्रीय लोग भी उनके भक्त रहे । एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग भी कैंची धाम आ चुके हैं और बाबा की कृपा का उल्लेख कर चुके हैं।

कैंचीधाम- भक्तों की आस्था का केंद्र

1964 में स्थापित कैंचीधाम आज उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थलों में से एक है। मान्यता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। हर वर्ष 15 जून को लगने वाले मेले में लाखों भक्त जुटते हैं। बाबा नित्य कंबल ओढ़ते थे, इसलिए कैंचीधाम आने वाले श्रद्धालु उन्हें कंबल भेंट करते हैं। बाबा का महाप्रयाण और विरासत

11 सितंबर 1973 को वृंदावन में उन्होंने देह त्याग किया, पर उनकी दिव्यता आज भी लोगों के जीवन में अनुभव की जाती है। “मिरेकल ऑफ लव” सहित कई पुस्तकों में उनकी लीलाओं का जिक्र है।

आडंबरों से परे रहने वाले महान संत

बाबा साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते थे और अपने पैर किसी को नहीं छूने देते थे। जो उनके चरण छूने आता, उसे वे श्री हनुमान जी के चरण छूने का निर्देश देते थे। उनका संदेश स्पष्ट था-भक्ति का रास्ता सरल रखो, सेवा से बढ़कर कोई साधना नहीं होती है।

 

 

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