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Monday, December 23, 2024

सुशील गावा के भाजपा में जाने के मायने !!

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भोंपूराम खबरी। रुद्रपुर के कांग्रेसियों के लिए एक बहुत बड़े झटके के रूप मे माने जाने वाले घटनाक्रम मे कद्दावर युवा कांग्रेसी नेता ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अपने सैकड़ों युवा समर्थकों के साथ गावा ने आज शाम क्षेत्रीय विधायक शिव अरोरा व अन्य भाजपा पदाधिकारियों की उपस्थिति मे भगवा पार्टी का झण्डा उठा लिया। इस घटना ने राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। जानकारों का कहना है कि सुशील कांग्रेस के उन गिने चुने कार्यकर्ताओं में से थे जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी का झण्डा बुलंद किया हुआ था।

गावा ने हालांकि भाजपा में शामिल होने के पीछे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लाया गया नकल विरोधी कानून और विधायक शिव की विधानसभा के विकास को लेकर दूरगामी दृष्टि को कारण बताया है लेकिन जानकारों के अनुसार कांग्रेस से मोहभंग होने का कारण मात्र यह नहीं है। दरअसल, पूर्व मंत्री व रुद्रपुर से विधायक रहे तिलक राज बेहड़ के किच्छा को कर्मस्थली बनाए जाने के बाद ही उनके समर्थक माने जाने वाले रुद्रपुर के काँग्रेसियों ने भाजपा मे शामिल होना आरंभ कर दिया था। अनेक युवा जो बेहड़ के रहते रुद्रपुर मे कांग्रेस के लिए समर्पित रहते थे उन्होंने अपना नया राजनीतिक गुरु शिव अरोरा को बना लिया। लेकिन गावा ऐसे थे जो उस दौर में भी कांग्रेस के लिए कार्य करते रहे। वह बेहड़ के अत्यंत नजदीकी व खास लोगों मे गिने जाते थे। उन्होंने शिव के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी मीना शर्मा को विधानसभा चुनाव मे जीजान से लड़ाया, अलबत्ता उन्हें हार नसीब हुई। इधर इस विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस की गुटबाजी भी सतह पर दिखी। नगर मे दो-दो अध्यक्ष खुद की श्रेष्ठता दिखाने के लिए होड़ मे लगे रहे तो जिला स्तर पर भी दुश्वारियाँ कम न थी। यहाँ यह भी गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व भी गावा का कांग्रेस की गुटबाजी से मोह भंग हुआ था जिसके बाद नगर के एक प्रमुख समाजसेवी और बेहड़ के चलते गावा अंततः मान गए थे। लेकिन मलाल बढ़ता रहा जिसकी परिणति अब सामने आई है।

अव्वल सुशील को जिला महासचिव बनाया गया। परंतु सदा एक्शन मे रहने वाले सुशील कुर्सी पर बैठकर राजनीति करने वालों मे नहीं है। उन्हें असल सुख जनता के बीच और जनता के दर्द को बांटकर मिलता है। कांग्रेस की बंद कमरे की और वह भी बँटी हुई राजनीति उनके अजेंडा मे फिट नहीं बैठ रही थी। शायद इसी के चलते उन्होंने भाजपा मे शामिल होने का फैसला लिया। कांग्रेस का हाथ त्यागते समय उनकी आँखों मे बहे आँसू काफी कुछ बयान कर रहे थे कि पार्टी से उन्हें कोई शिकवा नहीं था। लेकिन पार्टी के नेता और आला कमान की निष्क्रियता ने कहीं न कहीं गावा जैसे ऊर्जावान युवा नेता के दिल को ठेस पहुंचाई थी। बेहड़ का रुद्रपुर छोड़ना भी उनके फैसले का एक कारक बना है। बेहड़ के किच्छा रुख करने से कांग्रेस का कोई मार्गदर्शक यहाँ नहीं बचा, सबकी अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग है। यहाँ के कांग्रेसी द्वेष, ईर्ष्या, प्रतियोगिता से ही बाहर नहीं आ रहे तो एकजुट होने का तो सवाल ही नहीं उठता। इस शहर में भाजपा अपने कार्यों से नहीं बल्कि कांग्रेस की कमियों से लाभ लेती दिख रही है।

गावा के विषय मे कहा जाए तो वह निसंदेह कांग्रेस का युवा चेहरा थे। कोरोना काल हो या डेंगू महामारी या फिर रुद्रपुर मे आई बाढ़, उन्होंने अपने शरीर कि परवाह न करते हुए शहरवासियों की सेवा मे खुद को झोंके रखा। एक सुलझे और गहरे वक्ता के रूप मे भी गावा की पहचान रही है। ऐसे मे रुद्रपुर मे गावा का कांग्रेस छोड़ना पार्टी स्तर पर बहुत बड़ी चूक है। यहाँ एक ज्वलंत विषय और भी उभर कर आता है कि दिन ब दिन अपनी साख और अपने कार्यकर्ता खोती जा रही कांग्रेस पार्टी का थिंक टैंक कहाँ है। आखिर कौन है वह पार्टी के पुरोधा जो पार्टी का बंटाधार होते देख रहे हैं और कुछ करने का प्रयास भी नहीं कर रहे है। गावा को भाजपा मे शामिल करने के लिए मनाने वालों ने समय सही चुना जब बेहड़ अपनी किड्नी प्रत्यर्पण के बाद दिल्ली मे ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं तो ऐसे मे गावा को समझाने वाले उनके राजनीतिक गुरु की अनुपस्थिति भी भाजपाइयों के काम आई। एक और गूढ़ सत्य, कि गावा का कांग्रेस छोड़ना मात्र आरंभ है, अब कांग्रेस के एक और अत्यधिक कद्दावर नेता भी शीघ्र भाजपा जॉइन कर अपनी पार्टी को जोर का झटका बहुत जोर से देंगे।

रुद्रपुर मे गावा का कांग्रेस छोड़ना एक बहुत बड़ी घटना है, विशेषकर युवाओं के दृष्टिकोण से। लेकिन समाजसेवा को सर्वोपरि मानने वाले गावा भाजपा मे प्रथम पंक्ति के नेता कैसे बनेंगे यह फिलहाल भविष्य के गर्भ मे है। हालांकि गावा महत्वाकांक्षी नहीं हैं पर यक्ष प्रश्न यह है कि समाजसेवा बिना राजनीतिक दल के झंडे के भी की जा सकती है तो ऐसे मे कौन सी बलवती इच्छा ने गावा को भाजपा की ओर आकर्षित किया। फिलवक्त कुछ भी कहना है असामयिक होगा लेकिन यह तय है कि भाजपा के युवाओं नेता के लिए गावा एक बहुत अच्छे प्रतियोगी या फिर आदर्श साबित होंगे।

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