भोंपूराम खबरी। अतीक वो नाम था जिसकी एक समय खूब तूती बोलती थी। आलम ये था कि अपराध की दुनिया हो या राजनीति की… जो अतीक कहता था वही होता था। ये वो दौर था जब अतीक का नाम प्रयागराज ही नहीं, बल्कि पूरे यूपी में गूंजता था।
ये कहानी है माफिया अतीक अहमद की। शनिवार को अतीक और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई। दोनों चार दिनों की पुलिस रिमांड पर थे। प्रयागराज के सरकारी अस्पताल में मेडिकल के लिए पुलिस ले गई थी। यहां से बाहर निकलने पर दोनों मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे और इसी वक्त तीन हमलावरों ने दोनों को गोलियों से भून दिया। अतीक को सिर पर सटाकर गोली मारी गई और इसके बाद अशरफ पर हमला हुआ। अतीक वो नाम था जिसकी एक समय खूब तूती बोलती थी। आलम ये था कि अपराध की दुनिया हो या राजनीति की… जो अतीक कहता था वही होता था। ये वो दौर था जब अतीक का नाम प्रयागराज ही नहीं, बल्कि पूरे यूपी में गूंजता था। कहा जाता है कि उस वक्त अतीक जिस भी जमीन, घर या बंगले पर हाथ रख देता था, उसका मालिक उसे खाली करके चला जाता था। आज हम उसी अतीक की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे वह अपराध से लेकर राजनीति की दुनिया तक का चर्चित नाम बन गया? कैसे एक तांगे वाले के बेटे ने दशहत का ऐसा साम्राज्य खड़ा किया कि कानून भी उसके आगे बौना साबित होता रहा। आइए जानते हैं।
पिता तांगा चलाते थे और बेटे ने 17 साल की उम्र में पहला मर्डर कर दिया
10 अगस्त 1962 को इलाहाबाद में अतीक अहमद का जन्म हुआ। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर परिवार चलाते थे। अतीक घर के पास में स्थित एक स्कूल में पढ़ने लगा। 10वीं में पहुंचा तो फेल हो गया। इस बीच, वह इलाके के कई बदमाशों की संगत में आ गया। जल्दी अमीर बनने के लिए उसने लूट, अपहरण और रंगदारी वसूलने जैसी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया। 1997 में उसपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ। उस समय इलाहाबाद के पुराने शहर में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था। चांद बाबा इलाहाबाद का बड़ा गुंडा माना जाता था। आम जनता, पुलिस और राजनेता हर कोई चांद बाबा से परेशान थे। अतीक अहमद ने इसका फायदा उठाया। पुलिस और नेताओं से सांठगांठ हो गई और कुछ ही सालों में वह चांद बाबा से भी बड़ा बदमाश बन गया। जिस पुलिस ने अतीक को शह दे रखी थी, अब वही उसकी आंख की किरकिरी बन गया।
1989 में अतीक ने रखा राजनीति में कदम
1986 में किसी तरह पुलिस ने अतीक को गिरफ्तार कर लिया। इसपर उसने अपनी राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाया। दिल्ली से फोन पहुंचा और अतीक जेल से बाहर हो गया। जेल से छूटने के बाद अतीक ने साल 1989 में राजनीति में कदम रखा। इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। यहां उसका सीधा मुकाबला चांद बाबा से था। दोनों के बीच गैंगवार शुरू हो गया। अतीक की दहशत से पूरा इलाहाबाद कांपता था। कब्जा, लूट, छिनैती, हत्या ये सब उसके लिए आम सा हो गया। इसी की बदौलत वह चुनाव भी जीत गया। इसके कुछ महीनों बाद ही बीच चौराहे पर दिनदहाड़े चांद बाबा की हत्या हो गई।
लगातार पांच बार इलाहाबाद पश्चिमी सीट से रहा विधायक
चांद बाबा मारा गया तो इलाहाबाद ही नहीं, पूरे पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में अतीक अहमद का सिक्का चलने लगा। साल 1991 और 1993 में भी अतीक निर्दलीय चुनाव जीता। साल 1995 में लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी उसका नाम सामने आया। साल 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बना। साल 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गया। फिर 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से पांचवीं बार विधायक बना। आठ अगस्त 2002 की बात है। तब सूबे में बसपा का शासन था और मायावती मुख्यमंत्री थीं। अतीक को किसी मामले में पुलिस ने पकड़ा था और उसे जेल भेज दिया गया था। पेशी के लिए आठ अगस्त को उसे कोर्ट ले जाया जा रहा था। इसी बीच, उसपर गोलियों और बम से हमला हो गया। इसमें अतीक घायल हो गया, लेकिन उसकी जान बच गई। तब अतीक ने बसपा सुप्रीमो और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती पर आरोप लगाया था कि वह उसे मरवाना चाहती हैं।
अतीक के खिलाफ नहीं मिलते थे उम्मीदवार
अतीक आतंक का पर्याय बन चुका था। उसकी दहशत ने आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियों को भी परेशान करना शुरू कर दिया। उसका खौफ इतना हो गया था कि शहर पश्चिमी से कोई उसके खिलाफ चुनाव लड़ने से भी डरता था। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद सपा के टिकट पर इलाहाबाद की फूलपुर सीट से चुनाव जीत गया। उस वक्त अतीक इलाहाबाद पश्चिम सीट से विधायक था। इस सीट से अब वह अपने छोटे भाई अशरफ को चुनाव लड़ाने की तैयारी करने लगा।
बसपा प्रमुख मायावती के साथ अभद्रता करने वालों में अतीक भी था
गेस्ट हाउस कांड तो आपको याद होगा ही। वही कांड जिसने पूरे देश की सियासत में खलबली मचा दी थी। बात है 1995 की। मुलायम सिंह यादव की सपा और कांशीराम की बसपा गठबंधन सरकार यूपी की सत्ता में थी लेकिन गठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा था। फिर आया 23 मई 1995 का दिन। मुलायम सिंह यादव तब बसपा के संस्थापक कांशीराम से बात करना चाहते थे लेकिन कांशीराम ने मना कर दिया। इसी रात कांशीराम ने BJP नेता लालजी टंडन को फोन कर दिया। दोनों के बीच बीजेपी-बसपा गठबंधन को लेकर बातचीत हुई।
ये वो समय था, जब कांशीराम की तबीयत खराब थी। वो अस्पताल में भर्ती थे। उनकी देखभाल कर रहे थे उनके दोस्त और राज्यसभा सांसद जयंत मल्होत्रा। साथ में मायावती भी थीं। तब कांशीराम ने मायावती को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या वो सूबे की सीएम बनेंगी।
फिर आया दो जून, 1995 का दिन। इस तारीख को यूपी के राजनीतिक इतिहास का काला दिन कहा जाता है। इस दिन मायावती लखनऊ में ही स्टेट गेस्ट हाउस में बसपा विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थीं उधर समर्थन वापसी की सूचना से आगबबूला हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने समर्थकों को गेस्ट हाउस भेज दिया। इन समर्थकों को एक टास्क दिया गया। उस समय बसपा के एक बागी नेता राजबहादुर के नेतृत्व में पहले ही 12 विधायक टूटकर सपा के समर्थन में आ चुके थे। लेकिन दल-बदल कानून के चलते बसपा के 67 में से कम से कम एक तिहाई (उस समय के नियम के मुताबिक) विधायकों का टूटना जरूरी था।
बस मुलायम ने समर्थकों को टास्क दिया कि कुछ विधायकों को समझाकर या धमकाकर अपनी तरफ करना है। मुलायम समर्थक बाहुबलियों की ये फौज पहुंच गई गेस्ट हाउस। इसमें माफिया अतीक अहमद भी था। यहां करीब चार बजे से हिंसा शुरू हुई और दो घंटे तक चली। इस हिंसा में सपा और बसपा, दोनों दलों के कई समर्थक घायल हो गए। बसपा विधायकों ने आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस के कॉन्फ्रेंस रूम से कुछ विधायकों का अपहरण करने की कोशिश भी की गई। मायावती के साथ भी अभद्रता हुई। कहा जाता है कि उन्हें मारने की कोशिश हुई। सपा समर्थकों ने उन्हें गालियां दीं और जातिसूचक शब्द भी कहे। इसमें मुख्य आरोपियों में अतीक अहमद का नाम भी शामिल था।
वक्त के साथ-साथ मायावती ने इस कांड में शामिल कई लोगों को तो माफ कर दिया, लेकिन अतीक को नहीं। सत्ता में आते ही मायावती ने अतीक और उसके करीबियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। मायावती की सरकार के दौरान अतीक जेल में ही रहा। लेकिन अतीक ने अपनी राजनीतिक पकड़ बरकरार रखी। हालांकि, 2017 के बाद से अतीक और उसके परिवार के लिए मायावती ने भी नरमी दिखाई। यही नहीं, अतीक के परिवार के कुछ सदस्यों को बसपा में भी शामिल कराया।