भोंपूराम खबरी। दुनियाभर में प्रतिवर्ष सितंबर माह में अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मकसद बेटी, बेटियों, बालिकाओं के मुद्दे पर विचार करके उनकी भलाई की ओर सक्रिय कदम बढ़ाना और जिस समाज में बेटी / स्त्री या महिलाओं को पुरुष से कमतर माना जाता है, उस समाज में बदलाव लाने के उद्देश्य से ही यह दिन महत्वपूर्ण माना गया है।
आपको बता दें कि परिवार के सभी सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने में घर में पल रही एक बेटी का महत्वपूर्ण किरदार होता है। बचपन से माता-पिता के घर को संवारने तथा खुशियों से भर देने वाली बेटियां आज भी ससुराल, समाज तथा पुरुषप्रधान इस दुनिया में हर जगह सताई जा रही हैं, आज भी घर की नन्ही- मुन्नी बेटियां, स्कूल-कॉलेजों में पढ़ती ये बेटियां अपनी सुरक्षा को लेकर आज भी पुरुषों की मोहताज है। चाहे वो डॉक्टर हो या किसी ऑफिस में
कार्यरत हर स्थल पर बेटियों के साथ भेदभाव तथा उनकी उनकी इज्जत के साथ खेलना आज पहले से अधिक हो गया है।
गरीबी से घिरी बेटियां, दिन-रात संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होकर अपनी शिक्षा और सपनों को तो पूरा कर लेती हैं, लेकिन पुरुष वर्ग को शायद उसका ये पढ़ना- लिखना, आगे बढ़ना तथा उनके कदम से कदम मिलाकर चलने का प्रयास शायद उन्हें अपने ही नजरों में जीने नहीं देता हैं, इसीलिए तो अपने माता-पिता द्वारा हर अच्छी-बुरी परिस्थिति का सामना करके बेटियों को समाज में सिर
उठाकर चलने की इस सीख और भावना को कुछ लोग सहन नहीं कर पाते हैं और उनके साथ अभद्र तथा अनैतिकतापूर्ण व्यवहार करके उनको बेइज्जत करने में अपनी शान समझते हैं।
वैसे तो बेटी की अहमियत उसके माता-पिता से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है। बेटियां वो होती हैं तो बचपन से लेकर जवानी तक तो माता-पिता के घर को खुशियों से भर देती हैं, शादी होने के बाद ससुराल को महकाती हैं और पति और ससुराल वालों को हर पल खुश करने का प्रयास करती है।
शादी के बाद पिता के घर को भूलकर इस नए घर को अपनाती हैं, जहां वे सिर्फ अपने पति के लिए सभी को हमेशा खुश रखने का प्रयास करती हैं और मां बनने के पश्चात तो उसका पूरा जीवन अपने पूरे परिवार के प्रति समर्पण और मात्र अपने बच्चों और ससुराल वालों का होकर रह जाता है, लेकिन यहां भी बेटियों की अधिक कद्र नहीं होती और वे निरंतर उपेक्षा की शिकार होती रहती है। ससुराल में वो अपना करियर छोड़कर परिवारजनों की सेवा में लग जाती है, लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें यहां भी भेदभाव, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा आदि का शिकार होती हैं।
डॉटर्स दिवस क्यों मनाया जाता है, जानें इतिहास : हर साल सितंबर महीने के चौथे रविवार को ‘अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस’ मनाया जाता है। वर्ष 2024 में यह दिन 22 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। दुनियाभर में बेटियों को बेटे के समान ही महत्व और सम्मान देने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है।
आपको बता दें कि बेटियों / लड़कियों के महत्व को समझते हुए वर्ष 2007 में बेटी दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी। तब से ही बेटियों के लिए हर देश में एक दिन समर्पित किया गया है। बता दें कि हर देश में डॉटर्स / बेटी दिवस अलग- अलग दिन मनाया जाता है।
वर्तमान समय में भी रूढ़िवादी विचारधारा के चलते आज भी कई जगहों पर बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या जैसे कृत्य सरेआम किए जाते हैं। उन्हें कोख में ही मार दिया जाता है, अत: ऐसी छोटी सोच से बेटियों को बचाने और उन्हें सम्मान दिलाने के लिए तथा लोगों को जागरूक करने के लिए कि बेटियों / लड़कियों को भी लड़कों की तरह समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए, इसी सोच के साथ देश व दुनिया में हर साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस मनाया जाता है।
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