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Saturday, January 25, 2025

रोडवेज बस के ब्रेक फेल, चालक की समझदारी से बची यात्रियों की जान

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भोंपूराम खबरी। उत्तराखंड रोडवेज की बसों की गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। एक बार फिर बस के ब्रेक फेल होने का मामला सामने आया है। बस चालक की समझदारी की वजह से 40 यात्रियों की जान बच गई। मामला मसूरी का है। देहरादून आ रही उत्तराखंड रोडवेज बस के ब्रेक फेल हो गए। चालक ने बस को कंट्रोल में रखा और बस को पहाड़ी से टकराकर बस को रोका। इससे बस में सवार 40 यात्रियों की जान बच गई। बुधवार शाम करीब चार बजे मसूरी लाइब्रेरी बस स्टैंड से देहरादून के लिए रवाना हुई थी। बस कुछ ही दूर पहुंची थी कि हादसा हो गया।

जानकारी के अनुसार बस धीरज मुनि शाह ने चला रहे थे। उन्हें जैसे ही बस के ब्रेक फेल होने के बारे में पता चला तो पदमिनी निवास होटल जाने वाले संपर्क मार्ग पर चढ़ाकर पहाड़ी से टकरा दिया। टक्कर होने की वजह से बस रुक गई। इन दिनों उत्तराखंड में पर्यटन सीजन पीक पर चल रहा है। काफी भीड़ होने की वजह से हाईवे पर दवाब भी रहता है। राहगीरों का कहना है कि अगर बस पहाड़ी से नहीं टकराती तो दूसरे वाहनों को अपनी चपेट में ले सकती थी। बस चालक ने वाहन को पलटने से भी बचा दिया क्योंकि तेज रफ्तार होनी वजह से वाहन सड़क से नीचे उतर सकता था। इसके बाद यात्रियों को दूसरी बस से गंतव्य तक पहुंचाया गया। सभी यात्रियों ने बस चालक की तारीफ की। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि उत्तराखंड रोडवेज बस के ब्रेक फेल हुए हैं। इससे पहले भी मसूरी देहरादून मार्ग पर कई हादसे हो चुके हैं। दून-मसूरी मार्ग पर तीन माह में यह तीसरी बड़ी घटना है, जब परिवहन निगम की बस दुर्घटना का शिकार होने से बची हो।

उत्तराखंड परिवहन निगम के महाप्रबंधक संचालन दीपक जैन ने जांच की बात कही है। उन्होंने कहा कि ब्रेक की खराबी थी या फिर कोई दूसरा कारण, यह जांच के बाद ही सामने आ पाएगा। निगम कार्यालय से जांच के बाद ही बसें मार्ग पर भेजी जाती हैं लेकिन लगातार हो रहे हादसे, इस पर भी सवाल उठ रहा है। दून-मसूरी मार्ग पर पर्वतीय डिपो की बसें संचालित होती हैं। मसूरी डिपो में निगम की कुल 87 बसें हैं। इनमें सात बसें लंबी दूरी के मैदानी मार्गों पर संचालित होती है। जबकि डिपो में 80 बसें पर्वतीय मार्गों की हैं। पर्वतीय डिपो की रोजाना 30 बसें मसूरी मार्ग पर संचालित की जाती है। इनमें 25 बसें केवल दून-मसूरी जबकि शेष बसें मसूरी होकर दूसरे पर्वतीय स्थलों तक भेजी जाती हैं।

 

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