भोंपूराम खबरी।
ऑस्टिन टेक्सास विश्वविद्यालय के खगोल भौतिकीविदों ने तीन ऐसे तारों की अविश्वनीय खोज की है, जिनका रंग काला है। अंधेरे में डूबे यह तारे हमारे सूर्य से बढ़े हैं। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि ये डार्क मैटर से बने हो सकते हैं।
इन तारों के नाम जेएडीईएस -जेड 110 -0, जेएडीईएस जीएस – जेड 12-0 व जेएडीईएस जीएस – जेड 13 – 0 दिए हैं। जब पहली बार इन तारों को देखा गया तो इनकी पहचान आकाशगंगाओं के रूप में की गई। मगर गहन अध्य्यन के बाद पता चला कि ये काले तारे हैं, जो ब्रह्माण्ड के रहस्यमय पदार्थ डार्क मैटर से बने हो सकते हैं। दरअसल डार्क मैटर के काले पदार्थ के कण आपस में टकराकर खुद को नष्ट कर देते हैं, जो इन तारों में हो सकता है। बहरहाल अभी इनकी पुष्टि होनी शेष है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यदि वास्तव में काले तारे काले पदार्थ की प्रकृति को प्रकट करते हैं, तो संपूर्ण भौतिकी में यह सबसे गहरी अनसुलझी समस्याओं व रहस्य में से एक होगी। इस शोध को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
आधुनिक ब्रह्मांड के विज्ञान में डार्क मैटर ब्रह्मांड का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा बनाता है और ब्रह्मांड का लगभग 70 फीसद हिस्सा डार्क एनर्जी का है। वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार साधारण पदार्थ सूर्य , पृथ्वी और अन्य पदार्थ का हिस्सा केवल पांच प्रतिशत हैं। ब्रह्माण्ड में काले तारों का होना, आश्चर्यजनक है। जिसे लेकर वैज्ञानिक अध्ययन अब शुरू हो जाएंगे। डार्क मैटर का रहस्य आज भी बरकरार है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका अस्तित्व तो है, लेकिन यह नहीं जानते कि यह वास्तव में क्या वस्तु है। डार्क मैटर तारा एक नया विचार है। इसकी वास्तविकता का पता लगा पाना, वैज्ञानिकों के सामने बढ़ी चुनौती होगी।
ड्वार्फ स्टार का सत्य भी कुछ साल पहले सामने आया था
करीब दो दशक पहले तक माना जाता था कि ब्रह्माण्ड में ड्वार्फ स्टार यानी बौने तारे सीमित संख्या में ही मौजूद हैं, जो ब्रह्मांड के कुछ हिस्सों में ही हैं, लेकिन जब इनका गहन अध्ययन किया गया तो पता चला कि ये भी अंतरिक्ष के बड़े हिस्से में और बढ़ी संख्या में फाइल हुए हैं। इस खोज में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के दिवंगत निदेशक डा अनिल कुमार पांडे की अहम भूमिका रही थी। इस खोज में डा पांडे के साथ दुनिया के कई वैज्ञानिक शामिल रहे थे।