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Friday, July 26, 2024

ध्यान-अभ्यास के ज़रिये हमारा मिलाप प्रभु से हो जाता है,संत राजिन्दर सिंह महाराज

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भोंपूराम खबरी,सृष्टि के शुरूआत से ही इंसान की यही कोशिश रही है कि वो अपनी ज़िंदगी को खुशियों से जिये और इसके लिए वह उन कार्यों करने की कोशिश करता है जिनसे उसे लगता है कि उसे खुशी मिलेगी।हममें से बहुत से लोग यह सोचते हैं कि जब हमारा शरीर तंदुरुस्त होगा, हमारे पास बहुत सारा पैसा होगा, हमारे रिश्ते-नाते बेहतर होंगे, एक बहुत बड़ा घर होगा या एक सफल कैरियर होगा तो हमें खुशी मिलेगी। इसके लिए हम यही कोशिश करते हैं कि दुनिया में कुछ बन जाएं, अपने शरीर को स्वस्थ रखें, अपने लिए कुछ नाम कमाएं, कुछ धन-दौलत कमाएं, अपने परिवार व रिश्ते-नातों को अच्छी तरह निभायें और इन सब बाहरी खुशियों को पाने के लिए हम अपना बेशकीमती समय उन कार्यों में ही लगा देते हैं।

हममें से अधिकतर लोग अपने आपको शरीर और मन मानते हैं। हम अपना सारा समय अपनी शारीरिक जरूरतों (भोजन, आवास, कपड़ा) की पूर्ति और इसे आराम देने के लिए विभिन्न प्रकार के आनंद की प्राप्ति में ही लगा देते हैं। इसके साथ-साथ हम अपने बौद्धिक विकास के लिए अपना अधिकतर समय एक अच्छी शिक्षा की प्राप्ति में लगाते हैं जिससे कि हम एक सुनहरा उज्जवल भविष्य बनाकर इस दुनिया में नाम-शौहरत और दौलत कमा सकें।

अगर हम ध्यान से देखें तो हम पाते हैं कि इस दुनिया की शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक खुशियाँ प्राप्त करने पर हमें इनके खो जाने का डर हमेशा बना रहता है। इनमें से कोई भी खुशी स्थायी नहीं है क्योंकि इस दुनिया की हर चीज़ नाशवान है। ऐसे में हम सोचते हैं कि क्या कोई ऐसी खुशी है जो सदा-सदा के लिए हमारे साथ रहती है? तब हमारा ध्यान अपने धर्मग्रंथों व संतों-महापुरुषों की शिक्षाओं की ओर जाता है।

महापुरुष समझाते हैं कि अगर हमें सच्ची खुशी पानी हैं तो वह इस बाहर की दुनिया में नहीं बल्कि हमारे भीतर ही हमें मिलेगी। जिसके लिए हमें अपने ध्यान को इन बाहरी दुनिया के आकर्षणों से हटाकर अपनी आत्मा की ओर लगाना होगा। जिसके लिए हमें वक्त के किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में पहुँचकर उनसे ध्यान-अभ्यास की विधि सीखनी होगी। जैसे-जैसे हम ध्यान-अभ्यास में नियमित रूप से समय देते हैं तो हम अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़कर सच्ची खुशी का अनुभव करते हैं, जिससे कि हमारा इस जीवन को देखने का नज़रिया ही बदल जाता है।

ध्यान-अभ्यास के ज़रिये हमारा मिलाप प्रभु से हो जाता है और हम हमेशा-हमेशा की खुशी को पा लेते हैं। ध्यान-अभ्यास की यह विधि प्रत्येक इंसान कर सकता है चाहे वह बच्चा हो या बुजुर्ग। हमें चाहिये कि हम छोटी उम्र से ही ध्यान एकाग्र करना सीखें जिससे कि बड़े होने पर यह हमारी एक आदत बन जाए।

जो लोग ध्यान एकाग्र करना सीख लेते हैं वह अपना ध्यान संसार की चिंताओं से हटाकर स्वयं को अंतर के आनंद से जोड़ना सीख लेते हैं और अपने अंतर में सदा-सदा की खुशी का अनुभव करते हैं। जब हम अपनी दैनिक जीवन की जिम्मेदारियाँ निभा रहे होंगे, तब भी यह खुशी हमारे साथ रहेगी। जब हम काम पर जाएंगे, चाहे ट्रैफिक में गाड़ी चला रहे हों या शॉपिंग करते समय या बच्चों का पालन-पोषण करते समय दिन-रात, हर समय, हर पल यह खुशी हमारे साथ रहती है। ध्यान-अभ्यास करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जब हमने अंतर प्रभु की दिव्य-ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ते हैं तो हमें यह अनुभव हो जाता है कि प्रभु की यह शक्ति न सिर्फ इंसानों को बल्कि सृष्टि के सभी जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों आदि को भी जान दे रही है। तब हमारे अंदर सभी के प्रति प्रेम, अहिंसा और करूणा का भाव उत्पन्न होता है और हम चाहते हैं कि उनका जीवन भी खुशी से भरपूर हो जाए।

तो आईये आज विश्वभर में खुशी का दिन (International Day of Happiness) मनाया जा रहा है। इस अवसर पर हम ध्यान-अभ्यास में समय देकर अपने अंतर में सदा-सदा की खुशी को अनुभव कर इसे संसार भर में फैलायें।

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