भोंपूराम खबरी। उत्तराखंड में पहली बार तालाब में डिजाइनर मोती का उत्पादन हो रहा है। इसके लिए मत्स्य विभाग के सहयोग से किसान ने एक बीघा भूमि पर तालाव का निर्माण किया और अब उसमें सीप का पालन कर उससे डिजाइनर मोती बनाए जा रहे हैं जो वाराणसी की फर्म के जरिये दक्षिणी राज्यों में अपनी चमक छोड़ेंगे।
मत्स्य विभाग के अनुसार तराई के छोटे से गदरपुर विकास खंड में ग्राम कालीनगर में पर्ल कल्चर (मोती पालन की शुरुआत की गई है। सीप पालन बलवीर सिंह खाती ने पलं कल्चर में रुचि दिखाई तो विभाग ने उनके साथ मिलकर एक बीघा जमीन पर तालाब बनवाया और मोती पालन शुरू कर दिया। वर्तमान में उत्तराखंड में कहीं भी पलं कल्चर नहीं हो रहा है। आठ लाख रुपये का निवेश सीप पालक खाती ने तालाब में करीब दस हजार सीप डाली हैं। इनमें करीब 20 हजार डिजाइनर मोती का उत्पादन होगा तालाब पर तीन सर्जरी एक्सपर्टो को रखा गया है। जो चार महीने तक इनकी देखभाल करते हैं। खाती की और से पांच हजार डिजाइनर मोती का उत्पादन कर वाराणसी में एक फर्म को बेच भी दिए। पानी में डाले गए सीप करीब 18 महीने तक पड़े रहेंगे। उसके बाद इनमें तैयार मोती बाहर निकाले जाएंगे। यहां से वाराणसी की फर्म मोती को कच्चे माल के रूप में खरीदकर उन्हें तराशेगी और फिर ये मोती दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु व महाराष्ट्र में जाकर विकेंगे।
भगवान से लेकर प्रतीक चिह्न तक के वन रहे मोती
सीप के भीतर बनने वाले मोती डिजाइन के भी उत्पादित हो रहे हैं। साई बाबा, भगवान गणेश, ओउम इसाइयों का क्रास चिह्न व स्वास्तिक चिह्न आदि डिजाइन में मोती तैयार किए जा रहे हैं। ये तैयार होने के बाद वाराणसी की फर्म को कच्चे माल के रूप में बेच दिया जाता है। वाराणसी की फर्म इन मोती को तराशकर चमकदार बना उन्हें बाजार में बेचती है।
एक क्यूबिक मीटर पानी में सौ सीप का उत्पादन होता है। इसके तहत लगभग एक बीघा तालाब में दस हजार सीप डाले गए हैं। एक सीप से दो या चार मोती का उत्पादन हो सकता है। दस हजार सीप से लगभग 20 हजार मोती बनेंगे। एक मोती की कीमत करीब सौ रुपये है। इससे यह मोती करीब 20 लाख रुपये में बिकेंगे। ऐसे में सीप पालक को आठ लाख के निवेश पर करीब 12 लाख रुपये की शुद्ध आय होगी।
पानी की काई के भोजन से जिंदा रहती है सीप
सीप को आहार के रूप में जल जनित काई का भोजन कराया जाता है। इसके लिए तालाब में काई जमाने के लिए गोबर का इस्तेमाल करते हैं। गोबर से बनने वाली काई सीप प्राकृतिक भोजन के रूप में उसे खाती है।
मत्स्य पालकों को दिया जाएगा आधारभूत प्रशिक्षण सीप से मोती का उत्पादन करने के लिए जिले के अन्य मत्स्य पालकों को भी आधारभूत प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए सीप पालक बलवीर सिंह खाती के फार्म हाउस पर जल्द ही प्रशिक्षण का आयोजन होगा।
क्या है सीप
सीप एक तरीके से जल एनिमल है। इस सीप में मोती बनाने के लिए न्यूक्लियस डाला जाता है। इससे सीप चारों तरफ कैल्शियम कार्बोनेट की लेयर तैयार करता है। करीब 18 महीने के बाद कैल्शियम कार्बोनेट की लेयर से मोती बनकर तैयार हो जाती है।
मत्स्य विभाग के सहयोग से कालीनगर गांव में बलवीर सिंह खाती के तालाब में मोती का उत्पादन किया जा रहा है। जो एक अभिनव प्रयास है। शीघ्र ही जनपद के मत्स्य पालकों को इसका प्रशिक्षण देंगे। ताकि वे भी मोती उत्पादन कर आजीविका को बढ़ा सके। इसके लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का प्रस्ताव बनाकर स्वीकृति के लिए शासन को भेजा जाएगा।
-संजय छिम्वाल, सहायक निदेशक मत्स्य पालन विभाग ऊधम सिंह नगर