भोंपूराम खबरी। देहरादून। आने वाली 29 जुलाई को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (INTERNATIONAL TIGER DAY) मनाया जाएगा जिसका उद्देश्य विश्व भर में बाघों के संरक्षण व उनकी विलुप्त हो रही प्रजाति को बचाने के लिए जागरूकता फैलाना है, मगर जिस प्रकार से उत्तराखंड (uttrakhand) से बाघों की मौत के आकड़े सामने आ रहे है उन्हे ध्यान में रखते हुए बाघों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है.
यूँ तो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बाघों का दिखना और बाघों द्वारा स्थानीय लोगों पर हमला किए जाने की खबर सामने आना एक आम बात है,लेकिन जिस राज्य को पिछले साल यानी कि 2022 में बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट में बाघों के लिए देश में सबसे सुरक्षित बताया गया था. उसी राज्य में ठीक एक साल बाद बाघों की हो रही लगातार मौत से उनकी वर्तमान स्तिथि पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है की तेज़ी से बढ़ रही बाघों की इस मौत की संख्या के पीछे आखिर क्या वजह हैं?
दरअसल हाल में हुई बाघ गणना के अनुसार यह बात सामने आई की वर्तमान में राज्य में बाघों की संख्या 420 से अधिक है और अगर बात करें सिर्फ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र (Corbett Tiger Reserve Area) की तो क्षेत्र में 250 से अधिक बाघ की संख्या पाई गई है।मगर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की वेबसाइट से पता चला कि जनवरी से राज्य में अब तक 12 बाघों की मौत हो चुकी है, जबकि वन विभाग के अधिकारियों का कहना है की पिछले कुछ वक़्त में चार और बाघों की मौत की सूचना मिली है। जिसके बाद अब यह संख्या 16 तक पहुंच गई है।
आपको बता दें कि साल 2014 से 2018 की गणना के अनुसार बाघों की संख्या में लगभग 33% की वृद्धि देखने को मिली थी. वही चार साल बाद 2022 में जारी हुई गणना की रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या घटकर 6.7 प्रतिशत हो गई.
वन विभाग के अधिकारियों से बाघों की लगातार हो रही मौत का कारण पूछा गया तो अधिकारियों ने प्रदेश में बाघों सहित वन्य प्राणियों की मौत का एक बड़ा कारण वन जीवो के साथ होने वाली दुर्घटना को बताया।प्रदेश में तेज़ी से बढ़ते लापरवाह निर्माण और विकास गतिविधियों के कारण जानवरों का सिकुड़ता निवास स्थान बाघों को मानव आवास में आने के लिए मजबूर कर रहा है। यह भी एक कारण है कि पहाड़ी इलाकों के गांवों में बाघ देखे जा रहे हैं।जिसके बाद यह अंदाज़ा लगाया जा रहा है की पिछले साल की तुलना में इस साल राज्य में बाघों की स्तिथि पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है क्यूंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो चार साल बाद आने वाली गणना की रिपोर्ट बाघों की संख्या को लेकर चौका सकती है. भारत जैसे देश में बाघ प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं और पर्यावरण पर्यटन के अनुसार यह राजस्व स्थानीय समुदायों को समर्थन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।